बाबा दास गोपाल दास जी

बाबा दास गोपाल दास जी (पूर्व नाम गिरधारी लाल) का जन्म 24 मार्च सन् 1954 को हिमाचल प्रदेश के एक गाँव जगरूप नगर में एक गरीब परिवार में हुआ। इनके पिता स्वर्गीय श्री सीहनू राम व माता स्वर्गीय श्रीमति शैंकरी देवी था। इनका जीवन प्रारम्भ से ही संघर्षों से भरा रहा। इनके विचार शुरू से ही धार्मिक रहे। ये शुरू से ही मेहनत मजदूरी करते थे और कभी भी मेहनत करने से नहीं घबराए। बचपन में चार साल की उम्र में इनकी मुलाकात एक साधू से हुई जो काफी बुजुर्ग थे। उन महात्मा ने अपना आसन इनके घर के नज़दीक गाँव में एक बड़ के पेड़ के नीचे लगाया। वो इन्हें बहुत प्यार करते थे। जब सवेरे महात्मा जी ने इनको आवाज लगानी तो ये भाग कर जाते थे। वो इन्हें खाने के लिए जो फल देते थे पता नहीं वो उन फलों को कहां से लाते थे। ऐसा लगता था जैसे मानो कोई चमत्कार है। कुछ दिनों बाद महात्मा जी ने इनके पिता से अनुरोध किया कि इस बालक को हमें सौंप दो। पिता जी ने सोचा कि महात्मा हमारे बच्चे को कहीं ले ना जाए, इस डर से उन्होंने गाँव वालों को इकट्ठा किया और उस महात्मा को उस जगह से जाने के लिए कह दिया। वो महात्मा वहाँ से चले गए और फिर कभी लौटकर नहीं आए। उसके थोड़े दिन बाद गिरधारी लाल जी बहुत बीमार हो गए। काफी इलाज और मन्नतों के बाद वो ठीक हुए। सपने में कई बार महात्मा जी ने गिरधारी लाल जी को दर्शन दिये।

धीरे-धीरे समय बीतने लगा। 1972 में गिरधारी लाल जी ने मैट्रिक पास की। घर की परिस्थितियों के चलते, चाहते हुए भी वो आगे ना पढ सके और दिल्ली आ गए। दिल्ली आकर एक प्राईवेट फैक्ट्री में नौकरी करने लगे। 1 अगस्त 1984 को इनका विवाह पवना देवी के साथ हुआ तथा इनके दो पुत्रा व एक पुत्राी है। लगभग 25-26 वर्ष इन्होंने नौकरी की। बाबा जी का कहना है कि सन् 1997 में उनके जीवन में ऐसा मोड़ आया जो उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। उनके कथनानुसार इन्हें दासधर्म के साथ जोड़ने वाले इनके अपने बच्चे ही हैं। ये स्वर्ण पार्क में एक किराये के मकान में रहते थे। एक दिन स्वर्ण पार्क में महाराज चड़विंदा दास तीर तरक्कड़ी जी के सान्निध्य में बड़े सत्संग का आयोजन किया गया था जब ये नौकरी से घर आए तो इनके बच्चों ने कहा कि आज यहां पर किसी गुरू जी का सत्संग हो रहा है, वहां लंगर भी मिलेगा और हम सब वहां जाने के लिए आपका इंतजार कर रहे हैं कि जब आप आओगे तो हम सत्संग सुनने जाएंेगें और लंगर भी खाएंेगंे। यह बात सुनकर गिरधारी लाल जी को गुस्सा आ गया और बच्चों के डांटकर कहने लगे कि अब तो मैं थका हुआ नौकरी से आया हूँ और तुम्हे सत्संग में ले जाऊं, मैनें कहीं नहीं जाना, तुम सब चुपचाप सो जाओ। गिरधारी लाल जी शुरू से ही परमात्मा को मानते थे किन्तु सत्संगो में विश्वास नहीं करते थे। बच्चे डर से खाना खाकर सो गए। गिरधारी लाल जी से सोए हुए थे कि उन्हें ऐसा लगा कि किसी ने उनको हिलाकर जगाया और कहा कि जाओ जाकर सत्संग सुनो। वो घबराकर उठ गए। उन्होंने बच्चों को उठाया तो देखा कि बच्चे तो जाग ही रहे थे। उनके मन में तो था ही कि हमें सत्संग में जाना है पर उन्हें सत्संग से कोई मतलब नहीं था बस लंगर खाने का चाव था। वे उनको साथ लेकर उस स्थान पर चल पड़े जहां सत्संग होना था, वे पंडाल में एक तरफ जाकर बैठ गए। तभी थोड़ी देर में महाराज जी सत्संग करने के लिए आए और आकर अपनी गद्दी पर विराजमान हो गए। साध संगत जी यह बिल्कुल सच है कि जैसे ही गिरधारी लाल जी की नज़र महाराज जी के चेहरे पर पड़ी तो देखते ही रह गए। उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि उनके शरीर में बिजली सी कौंध गई है और उनके भीतर से एक आवाज आई कि जिसकी तलाश में था वह मुझे आज मिला है। फिर तो गिरधारी लाल जी को ऐसी लगन लगी कि जब तक वे महाराज जी के दिन में एक बार दर्शन नहीं कर लेते तब तक उन्हें चैन नहीं मिलता था। नौकरी से आते ही वो पहले डेरे जाते थे। उस समय स्वर्ण पार्क में डेरा बन रहा था। वे वहां जाकर सेवा करते और जब भी सत्संग में जाते तो सबसे पीछे जाकर बैठ जाते। जब इन्हें पता चला कि महाराज जी नाम भी देते हैं तो इनके मन में नाम लेने की तड़प पैदा हुई। 7 दिसम्बर 1997 को हुजूर महाराज दर्शन दास जी के जन्मदिवस का समागम था और गिरधारी लाल जी के भाई की शादी थी। लेकिन नाम लेेने की तड़प में वो शादी में नहीं गए और नाम दान की बख्शीश प्राप्त की। नाम लेने के बाद उनको ऐसी लगन लगी कि वे जी जान से सेवा करने लगे। सेवा भी वही जीव कर सकता है जिससे गुरू करवाना चाहे।

एक दिन स्वर्ण पार्क में सत्संग के बाद महाराज जी सारी संगत के साथ बैठे थे, ये भी सबसे पीछे जाकर बैठ गए तो महाराज जी ने उन्हें बुलाकर कहा कि आप सुबह 3.35 पर सारे भवन में कच्ची लस्सी का छिंटा देकर कीर्तन किया करो। तो ये मन ही मन बहुत खुश हुए और उन्होंने महाराज जी का हुक्म मानकर 4-5 साल तक यही डयूटी करते रहे। उनकी सेवा भावना देखकर महाराज जी ने उनसे कहा कि हमने आपको कोई डयूटी देनी है। तब ये बोले महाराज जी मैं जो डयूटी कर रहा हूँ झाडू, पोचे और लंगर बनाने की, यही करता रहूगां। क्योंकि महाराज जी का इशारा उनको तिलक लगाने का था, लेकिन उन्होंने महाराज जी को कहा कि अगर आप मुझे यहां कोई और डयूटी देंगें तो मैं यहां से चला जाऊंगा। उसके बाद 1साल तक महाराज जी ने गिरधारी लाल जी से डयूटी के बारे कोई बात नहीं की। 19 जून 2002 को जब महाराज जी पंजाब जा रहे थे तो उन्होंने गिरधारी लाल जी को बुलाकर पूछा कि आपको हुजूर महाराज दर्शन दास जी मिले थे। तो इन्होंने कहा कि नहीं। तो महाराज जी ने कहा कि वो आपको मिलेंगें और कुछ देंगें। यह कहकर महाराज चड़विंदा दास जी पंजाब चले गए। उसी रात गिरधारी लाल जी सिमरन करने बैठे तो उन्हें ऐसा लगा कि ना वो जाग रहे हैं और ना ही सो रहे हैं। महाराज चड़विंदा दास जी उनके पास आए और कहने लगे कि हम आपको यह काम सौंपना चाहते हैं। यह सुनते ही इनको गुस्सा आ गया और उन्होंने महाराज जी से कहा कि, ‘‘मैने आपको पहले भी कई बार कहा है कि यदि आप मुझे यह काम सौंपोगे तो मैं यहाँ से चला जाऊंगा।’’ लेकिन महाराज जी ने उन्हे प्यार से रोक लिया। गिरधारी लाल जी उठकर बैठ गए और कुछ देर घूमने के बाद वही बात सोचते-सोचते लेट गए। थोड़ी देर बाद एक बहुत बुजुर्ग, जिनकी दाढ़ी बिल्कुल सफेद और चेहरा पतला और हल्के पीले रंग की दस्तार बांध रखी थी, गिरधारी लाल जी के पास आए और उन्हें गले से लगाया व कहने लगे कि बेटा हमने तुझे एक काम देना है और तुम्हें ये करना पड़ेगा। तो उन्होंने ये उत्तर दिया कि, ‘‘महाराज जी मैं इस काबिल नहीं हूँ, मैं यह काम नहीं कर सकता।’’ तो उन्होंने कहा कि बेटा मैं तो शुरू से तुम्हारे साथ रहा हूँ और आगे भी साथ रहूंगा। जब उन्होंने यह बात कही तो गिरधारी लाल जी को उन बचपन वाले महात्मा की याद आ गई। जो उन्हें गिरधर गोपाल कह कर बुलाते थे। उसके बाद उन्होंने वहां से एक खटोला उठाया और दरवाजे के आगे बिछाकर चादर ओढ़कर लेट गए। गिरधारी लाल जी उनके चरणों की ओर बैठ गए और उनके चरण अपनी गोद में रख लिए तो क्या देखते हैं कि वह चरण तो महाराज चड़विंदा दास जी के हैं। जब उन्होंने अपने चेहरे से चादर हटाई तो गिरधारी लाल जी ने देखा कि उनकी दाढ़ी काली और जगमगाता हुआ चेहरा हुजूर महाराज दर्शन दास जी का था। उन्होंने कहा कि, ‘‘बेटा जो बात मैने तुझे कही है वो तुझे करनी पड़ेगी।’’ बाबा जी के कथनानुसार मुझे तभी अहसास हो गया था कि ये मुझे छोड़ेंगे नहीं। जब महाराज चड़विंदा दास जी पंजाब से वापिस आए तो उन्होंने फिर गिरधारी लाल जी से पूछा कि महाराज दर्शन दास जी आपको मिले थे ? तब उन्होंने, उनको पूरा वृतांत सुनाया।

15 अगस्त 2002 को हुजूर महाराज दर्शन दास जी के ज्योति दिवस पर गिरधारी लाल जी को महाराज चड़विंदा दास जी ने तिलक किया और बाबा दास गोपाल दास नाम दिया व साध संगत की सेवा करने की डयूटी दी। तभी से बाबा जी दासधर्म के प्रचार में लगे हुए साध सगत की सेवा में अनवरत जुटे हैं।