बाबा दास सूरमा सिंह जी
कहते हैं बिछड़ी बूंद फिर सागर में मिल जाती है, उसी प्रकार जिस पूर्ण गुरू की जो रूहें होती हैं, गुरू उनकी डोरें अपनी तरफ स्वयं खींच लेते हैं, दास परमार्थी राह और रूहानियत से परे एक आम इंसानी जिंदगी जी रहा था। दिन रात विष्य विकारेां में फंसा रहता, क्योंकि परिवारिक माहौल ही ऐसा था। इसी राह पर चलने के कारण घर में मानसिक शारीरिक व आर्थिक कष्टों का सामना भी करना पड़ा। घर में सुख शान्ति लाने के लिए हम ईश्वर का सहारा ढूंढने लगे। इसी तलाश में हमने एक ऐसी जगह पर जाने लगे जहाँ एक माता जी काली माती को चैंकी लगाती थी। पर वहाँ भी हमें मन की शान्ति नहीं मिली। एक दिन उन्हीं माता जी ने हमें महाराज चड़विन्दादास जी के विषय में बताया। जहाँ वो चैकी लगाती थी वहाँ साहिब की गद्दी सजी थी। तब पहली बार मैंने महारज जी के प्रवचन सुने, मुझे उनके प्रति लगन लग गई तथा में लगातार सत्संग में जाकर जो भी सेवा मिलती करने लगा। अपनी उम्र के 60 दशक में होते हुए भी डी.एम.एस. में नौकरी भी करता हूँ और सेवा भी साथ-साथ चलती रहती है। ऐसे ही सेवा डयूटी करते मुझे 7 दिसम्बर को नाम दान की प्राप्ति हो गई। सन् 2005 में महाराज जी ने सहज अवतार महाराज दर्शन दास जी के दिव्य खजाने से मुझ दास को ‘‘रूहानी शब्द’’ देकर धूना साहिब पर जप-तप करने का हुक्म दिया। 31 जुलाई 2005 को महाराज जी ने दास को बाबा जी का रूतबा देकर बाबा दास सूरमासिंह के नाम से नवाजा। दास पर गुरू हर पल मेहरबान हैं। उनके द्वारा दिये गए वरदान और वचनों मेें गुरू आप समाकर साध-संगत पर रहमत करते हैं। हुजूर महाराज दर्शन दास जी व महाराज चड़विन्दादास जी की रहमत और कृपा का ब्यान करने के लिए दास के पास शब्द नहीं हैं अथाह शक्तियों के मालिक ने मेरे और मेरे परिवार पर अपनी असीम कृपा की है। दास का रोम-रोम उनका कर्जदार है।